बजट के प्रकार ( Types of Budget )

◆◆बजट के प्रकार ( Types of Budget ) ◆◆
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बजट प्रायः पांच प्रकार के होते हैं , जो निम्नलिखित हैं :
1 . पारम्परिक अथवा आम बजट ( Aam budget )
2 . निष्पादन बजट ( Performance budget )
3 . शून्य आधारित बजट (Zero based budget )
4 . परिणामोन्मुख बजट ( Outcome budget )
5 . लैंगिक बजट ( Gender budget )

◆१  ◆ पारम्परिक अथवा आम बजट ( Aam Budget )◆
वर्तमान समय के ‘ आम बजट ’ का प्रारंभिक स्वरूप ‘पारम्परिक बजट ’ ( Traditional budget ) कहलाता है।
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(((आम बजट का मुख्य उद्देश्य )))
विधायिका (legislature ) का कार्यपालिका ( executive ) पर ‘वित्तीय नियंत्रण ’ ( financial control ) स्थापित करना है। इस बजट में सरकार की
आय (income ) और व्यय (expenditure ) का वार्षिकलेखा-जोखा होता है। इस बजट में सरकार किस क्षेत्र में कितना धन व्यय करेगी, उसका उल्लेख तो करती है किन्तु इस व्यय से क्या -क्या परिणाम प्राप्त होंगे उनका ब्योरा नहीं दिया जाता है। अतः इस प्रकार के बजट का मुख्य उद्देश्यसरकारी खर्चों पर नियंत्रण करना तथा विकास कार्यों को अंजाम देना था न कि तीव्र गति से विकास। जिसके परिणामस्वरूप पारम्परिक बजट की यह पद्धति स्वतंत्र भारत की समस्याओं को सुलझाने तथा विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रही। यही कारण है कि भारत में ‘ निष्पादन बजट' ( Performance budget ) की आवश्यकता तथा महत्त्व को स्वीकार किया गया तथा इसे परम्परागत बजट के ‘पूरक’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

◆२ ◆ निष्पादन बजट ( Performance Budget )◆◆
कार्य के परिणामों (result) को आधार बनाकर निर्मित किया जाने वाला बजट ‘निष्पादन बजट ’ ( Performance budget ) कहलाता है।.निष्पादन बजट मूलतः ‘लक्ष्योन्मुखी’ ( Target oriented ) तथा ‘उद्देश्य परक’ (Objective oriented ) प्रणाली पर आधारित होता है जिसमें केवल संगठनात्मक आय - व्यय का हिसाब ही नहीं बल्कि ‘कार्य के परिणामों ’ को मूल्यांकन का आधार बनाया जाता है।
✍ नोटः विश्व में सर्वप्रथम ‘निष्पादन बजट ’ का प्रारंभ संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ जहां प्रशासनिक सुधारों के लिए हूपर आयोग ( 1949 ) का गठन किया गया। जिसकेअनुसार, ‘निष्पादन बजट में सरकार क्या कर रहीहै ? कितना कर रही है ? तथा कितनी कीमत पर कर रही है ? इन सभी बातों को सम्मिलित
किया गया। ’
◆-भारत में निष्पादन बजट को उपलब्धि बजट या कार्यपूर्ति बजट भी कहा जाता है।

🌐३ ◆  शून्य आधारित बजट ( Zero Based Budget )◆
इस बजट को अपनाने के दो प्रमुख कारण हैः
1 . देश के बजट में निरंतर पाया जाने वाला घाटा (व्यय ↑ आय ↓ )।
2 . निष्पादन बजट प्रणाली का सफल क्रियान्वयन न हो पाना।
उपरोक्त दोनों कारणों ने इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि, देश के बजट में लगातार बढ़ते घाटे पर अंकुश लगाने के लिए व्यय में कटौती करना आवश्यक है। यह बजट प्रणाली विगत वर्षों में किए गए व्ययों पर विचार नहीं करती और न ही विगत वर्षों के व्ययों को भावी वर्ष के लिए प्रयुक्त करती है बल्कि यह प्रणाली इस बात पर बल देती है कि व्यय किया जाए या नहीं अर्थात् प्रश्न यह नहीं कि व्यय में कितनी वृद्धि एवं कितनी कमी की जाए बल्कि प्रश्न यह है कि व्यय किया जाए या नहीं ?
इस बजट प्रणाली में प्रत्येक क्रियाकलाप के लिए ‘शून्य आधार ’ ( Zero based ) से पुनः औचित्य निर्धारित करना पड़ता है अर्थात् पुराने व्ययों पर नये व्ययों का प्रावधान नहीं किया जाता बल्कि पुनः प्रारंभ से औचित्य निर्धारित किया जाता है। इस प्रणाली में प्रत्येक क्रियाकलाप का परीक्षण ठीक उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार किसी नए प्रस्ताव का परीक्षण करके यह निर्णय लिया जाता है कि यह कार्य आवश्यक है या नहीं।
इस प्रणाली को ‘सूर्य अस्त बजट ’ ( Sunset budget system) प्रणाली भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वित्तीय वर्ष के सूर्य अस्त होने से पहले प्रत्येक विभाग को एक शून्य आधारित बजट प्रस्तुत करना होता है जिसमें उसके प्रत्येक क्रियाकलाप का लेखा-जोखा रहता है।
.◆नोटः
Zero Based Budget का जनक पीटर ए - पायर ( 1970 ) को माना जाता है और इस प्रणाली का सर्वप्रथम प्रयोग 1973 में अमेरिका के जार्जिया प्रान्त के बजट में तत्कालीन गवर्नर जिमी कार्टर द्वारा अपनाया गया। बाद में इसे अमेरिका के राष्ट्रीय बजट (1979 ) में भी अपनाया गया।
✍ भारत में इस प्रणाली की शुरूआत एक प्रमुख शोध संगठन ‘ वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ’ ( Council of Scientific andIndustrial Research) द्वारा किया गया और केंद्र सरकार ने 1987 – 88 के बजट से इसे लागू करने का निर्णय किया।

📝-भारत के वित्त मंत्रलय (Finance Ministry ) के अधीन कार्यरत ‘व्यय विभाग’ ने केंद्र सरकार के विभिन्नमंत्रलयों एवं विभागों में जीरो बेस बजटिंग लागू करने के लिए एक विस्तृत दिशा -निर्देश बनाने के लिए वित्तीय सलाहकारों की एक समिति नियुक्त की।
)- केंद्र सरकार के अतिरिक्त विभिन्न राज्य सरकारें अनुपयोगी होती जा रही अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों पर होने वाले भारी- भरकम व्ययों को कम करने के उद्देश्य से इस प्रणाली का प्रयोग कर रही है।
)-महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा अन्य कई राज्य सरकारों ने ‘ शून्य आधारित बजट ’ ( Zero based budgeting ) का प्रयोग वर्ष 1987 – 88 से ही लागू करने का फैसला किया।
)-मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने इस प्रणाली को वर्ष 1995 -96 से सभी विभागों में सख्ती से लागू करने का फैसला किया।
):-वर्तमान में लगभग सभी राज्य सरकारों द्वारा पूर्णरूप से न सही किन्तु आंशिक रूप से इस प्रणाली को अपनाया जा रहा है।
【 by vikram Singh 】

◆4 ◆ ((((परिणामोन्मुखी बजट)))◆◆( Outcome Budget )◆
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देश में हर साल बड़ी संख्या में विकास से संबंधित योजनाएं , जैसे — मनरेगा , एनआरएचएम , मध्यान्ह भोजन योजना , प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना एवं भारत निर्माण , आदि शुरू होती हैं। इन योजनाओं पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है परन्तु इन योजनाओं को अमली - जामा किस हद तक पहनाया गया अर्थात यह योजनाएं अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कहां तक सफल रही हैं इसे मापने के लिए कोई खास पैमाना निर्धारित नहीं है। योजनाओं के लटके रहने से लागतों में वृद्धि हो जाती है। इससे होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी तय करने के लिए भी कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है। इस तरह की कई कमियों को दूर करने की कोशिश देश के पहले आउटकम बजट , जिसे 2005 में पेश किया गया , में की गयी जिसके अन्तर्गत आम बजट में आवंटित धनराशि का विभिन्न मंत्रलयों और विभागों ने क्या और कैसे उपयोग किया , का ब्योरा देना आवश्यक था ?
◆परिणामोन्मुख बजट ( outcome budget )◆
इसका रिपोर्ट कार्ड है। यह मंत्रलयों और विभागों के कार्य प्रदर्शन में एक ‘मापक ’ का भी काम करता है जिससे सेवा , निर्माण प्रक्रिया , कार्यक्रमों के मूल्यांकन और परिणामों को और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। इससे यह निश्चित हो जाता है कि outcome budget के जरिये विकास कार्यक्रमों को और भी अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है और उनके लिए निर्धारित लक्ष्यों की आपूर्ति की सही -सही जानकारी भी मिल सकती है।

◆5 ◆ लैंगिक बजट ( Gender Budget )◆◆
वर्तमान बजट में उन तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों पर जिनका संबंध महिला और शिशु कल्याण से है कितना धन आवंटित किया गया इसका उल्लेख ही लैंगिक बजट ( gender budgeting ) माना जाता है। लैंगिक बजट के माध्यम से सरकार ,  महिलाओं के विकास, कल्याण और सशक्तिकरण से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए प्रतिवर्ष एक निर्धारित राशि की व्यवस्था सुनिश्चित करने का प्रावधान करती है। ’

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